अगर मुझसे टूटा है पैमाना-ए-उल्फत, तुम्हारी नजर क्यों  झुकी जा रही है !!

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ये रस्म-ए-उल्फत इज़ाज़त नहीं देती वरना, हम भी तुम्हे ऐसे भूलें  कि सदा याद रखोगे !!

यूँ तो उल्फत के  तकाज़े है बहुत, एक वो ज़ालिम बहुत  एक हम ज़िद्दी बहुत !!

गुज़र जाएंगे मेरे जनाजे तेरी चौखट से, मसरूफ़ रहना तुम फिर भी अपनी उल्फत में !!

अगर मुझसे टूटा है पैमाना-ए-उल्फत, तुम्हारी नजर क्यों  झुकी जा रही है !!

तुम से उल्फत के तकाज़े निभाये न जाते, वरना हमको भी  तमन्ना थी के चाहे जाते !!

छोड़ तो दी रस्मे उल्फत ज़माने के लिए, मर मर के जिए है हम दुआओं में उम्र ले कर !!

मुझसे तू रख या न रख मरासिम या इत्तफाक, मेरी उल्फत को कह फितूर यूँ रुसवा तो न कर !!