ये केसी घटा छाई हैं, हवा में नई सुर्खी आई है, फ़ैली है जो सुगंध हवा में , जरुर महादेव ने चिलम लगाई है !!
हवाओं में गजब का नशा छा गया,
लगता है महादेव का त्यौहार आने वाला है !!
घनघोर अँधेरा ओढ़ के,
मैं जन जीवन से दूर हूँ,
श्मशान में हूँ नाचता...
मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ !!
हँस के पी जाओ भांग का प्याला
क्या डर है जब साथ है अपने त्रिशुल वाला !!
अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चाण्डाल का,
काल भी उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का !!
हर हर महादेव
काल का भी उस पर क्या आघात हो, जिस बंदे पर महाकाल का हाथ हो !!
दिखावे की मोहब्बत से दूर रहता हूँ मैं,
इसलिए महाकाल के नशे मे चूर रहता हू मैं !!
जिनके रोम-रोम में शिव हैं वही विष पिया करते हैं ,
जमाना उन्हें क्या जलाएगा,
जो श्रृंगार ही अंगार से किया करते हैं !!
विभत्स हूँ, विभोर हूँ,
मैं समाधी में ही चूर हूँ !!