दो चार लफ्ज़ प्यार के लेकर हम क्या करेंगे, देनी है तो वफ़ा की मुकम्मल किताब दे दो !!

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लम्हों में क़ैद कर दे जो सदियों की चाहतें, हसरत रही कि ऐसा कोई अपना तलबगार हो !!

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अब यह सिलसिला जारी होगा लफ्जों का खेल शुरू होगा.. कुछ दर्द कुछ इश्क होगा आज समा कुछ और होगा. !!

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मोहब्बत करना कोई हमसे सीखे, जिसे टूटकर चाहा वो अबतक बेखबर है !!

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अपना तो चाहतों में बस यही उसूल है, जब तू कबूल है तो तेरा सब कुछ कबूल है !!

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तरसेगा जब दिल तुम्हारा मेरी मुलाकात को, तब आ जायेंगे ख्वाबों मे हम उसी रात को !!

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सैलाब तो कई आएंगे जलजले भी बहोत होंगे.. जब लफ्ज़ से हम आपके दिल में गुजरते जाएंगे !!

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इस लफ्ज-ए-मोहब्बत का इतना सा फसाना है, सिमटे तो दिल-ए-आशिक बिखरे तो जमाना है !!

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यही बहुत है कि तुमने पलट के देख लिया, ये लुत्फ़ भी मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा है !!

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