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क्या लिखूं तेरी तारीफ-ए-सूरत में यार, अलफ़ाज़ कम पड़ रहे हैं तेरी मासूमियत देखकर !!
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हाय ये नज़ाकत ये शोखियाँ ये तकल्लुफ़, ये हुस्न, कहीं तू मेरी शायरी का कोई हसीन लफ्ज़ तो नहीं !!
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कुछ फिजायें रंगीन हैं, कुछ आप हसीन हैं, तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो संगीन हैं !!
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तुम्हे देख के ऐसा लगा चाँद को जमीन पर देख लिया तेरे हुस्न तेरे शबाब में सनम हमने कयामत को देख लिया !!
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मुझे भी अब नींद की तलब नहीं रही अब रातों को जागना अच्छा लगता है !!
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हम आज उसकी मासूमियत के कायल हो गए, उसकी सिर्फ एक नजर से ही घायल हो गए !!
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तेरी मोहब्बत में डूब कर बूँद से दरिया हो जाऊँ मैं तुझसे शुरू होकर तुझमें ख़त्म हो जाऊँ !!
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तुमको देखा तो मोहब्बत भी समझ आयी वरना इस लफ्ज़ की सिर्फ़ तारीफ़ सुना करते थे !!
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तुम्हारे गालों पर एक तिल का पहरा भी जरूरी है, डर है की इस चहरे को किसी की नज़र न लग जाए !!
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