तुझसे दूर रहकर कुछ यूँ वक़्त गुजारा मैंने, ना होंठ हिले फिर भी तुझे पल-पल पुकारा मैंने !!

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आलम बेवफाई का कुछ इस कदर बढ़ गया, फासला तय होता रहा और दूरियां बढ़ती गई !!

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ये दूरियाँ तो मिटा दूँ मैं एक पल में मगर, कभी कदम नहीं चलते कभी रास्ते नहीं मिलते !!

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दूरी ने कर दिया है तुझे और भी करीब, तेरा ख़याल आ कर न जाये तो क्या करें !!

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तुम कितने दूर हो मुझसे मैं कितना पास हूँ तुमसे, तुम्हें पाना भी नामुमकिन तुम्हें खोना भी नामुमकिन !!

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न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है न गुज़र हदों से न हद बता यही दायरा है ये ठीक है !!

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मुझसे दूरियाँ बनाकर तो देखो, फिर पता चलेगा कितना नज़दीक हूँ मैं !!

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दूरियां बढ़ना लाज़मी था, प्यार हमारा  एकतरफा जो था !!

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माना की दूरियां कुछ बढ़ सी गई है लेकिन, तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता है !!

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