मां कुष्मांडा मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

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कूष्मांडा का अर्थ क्या है?

अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।

मां कूष्मांडा का स्वरूप

इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है।

किस फूल से करे मां कुष्मांडा  की पूजा

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है | इस दिन मां कुष्मांडा को उनका पसंदीदा चमेली का फूल या पीले रंग का कोई भी फूल पूजा में चढ़ाना चाहिए | इससे मां प्रसन्न होकर अपने भक्तों को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देती हैं |

मां कुष्मांडा की पूजा विधि

पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र 'सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्‍मांडा शुभदास्तु मे। ' का ध्यान करें। इसके बाद शप्‍तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच और अंत में आरती करें।

मां कुष्मांडा का भोग

माता कूष्मांडा का स्वाभाव बहुत ही निर्मल होता है | निर्मल मन से की गयी अति अल्प सेवा और भक्ति से माता कूष्मांडा प्रसन्न हो जाती हैं। यह कहा जाता है कि मां कुष्मांडा को मालपुए बहुत प्रिय हैं इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें मालपुए का भोग लगाया जाता है।

चौथे दिन का  शुभ रंग

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है | कहा जाता है कि इस दिन भक्तों को नारंगी रंग के कपड़े पहनकर मां की पूजा करनी चाहिए | ये ज्ञान और शांति का प्रतीक है |

निर्भीकता और सौम्‍यता की देवी माँ कूष्माण्डा आपको सदैव उर्जावान रखे |  नवरात्रि की पावन शुभकामनाएं