ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया !!

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वादा किया था फिर भी न आये मज़ार पर, हमने तो जान दी थी, इसी एतबार पर !!

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तुम मुझे मौक़ा तो दो ऐतबार बनाने का ‘फ़राज़’ थक जाओगे मेरी वफ़ा के साथ चलते चलते !!

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उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं, उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है !!

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तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ऐतबार होता !!

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मेरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं मैं आदमी हूँ मेरा  ऐतबार मत करना !!

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मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ऐतबार न कर !!

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मेरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता किसी ने तोड़ दिया ऐतबार टूट गया !!

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यक़ीन चाँद पे, सूरज में ऐतबार भी रख मगर निगाह में थोड़ा सा इंतज़ार भी रख !!

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